अंधेरे से उजाले तक
अंधेरे से उजाले तक
भूमिका
जब हालात हर रास्ता बंद कर देते हैं, तो हौसला ही वो चाबी बनता है जो नई राहें खोलता है। यह कहानी है एक ऐसे ही लड़के की, जिसने गरीबी, ताने, और असफलताओं को पार करके अपनी किस्मत खुद लिखी।
1. संघर्ष की ज़मीन
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव रामपुर में एक लड़का रहता था, नाम था आरव। उसका जन्म एक बहुत ही गरीब किसान परिवार में हुआ था। आरव का घर कच्चा था, छत से बारिश में पानी टपकता और गर्मी में मिट्टी की दीवारें तपतीं। लेकिन उस छोटे से घर में एक सपना पल रहा था—बड़ा बनने का सपना।
आरव के पिता रामलाल एक ईमानदार किसान थे। मुश्किल से गुज़ारा होता था, फिर भी उन्होंने कभी अपने बेटे की पढ़ाई में कमी नहीं आने दी। माँ सुशीला देवी का जीवन घर के छोटे-बड़े कामों में बीतता था, लेकिन हर शाम जब वो आरव को पढ़ते देखतीं, तो आँखों में उम्मीद जगती।
2. स्कूल और समाज की दीवारें
आरव पढ़ाई में तेज़ था। गाँव के सरकारी स्कूल में वो हर साल टॉप करता, लेकिन सुविधाएं लगभग शून्य थीं। न किताबें पूरी थीं, न ड्रेस, न स्कूल बैग। कई बार पुराने अख़बारों और टूटे रजिस्टर के पन्नों पर ही उसे अपना होमवर्क करना पड़ता था।
गाँव के कई लोग कहते,
"काहे पढ़ा रहे हो इसे? आखिर में तो हल जोतना है।"
आरव यह सब सुनता था, पर जवाब नहीं देता। उसके पास शब्द नहीं थे, पर आंखों में कुछ था—जिद, आग, और सपना।
3. पहला सपना – एक अफसर बनना
एक दिन स्कूल में एक अफसर आए, जो शिक्षा विभाग से थे। उनकी वर्दी, बात करने का तरीका और लोगों का सम्मान देखकर आरव ने पहली बार सोचा—
“मुझे भी कुछ ऐसा ही बनना है। कुछ ऐसा कि मेरे गाँव का नाम रोशन हो।”
उस दिन से आरव का सपना था—IAS बनना। लेकिन सपना बड़ा था और रास्ता मुश्किल।
4. पैसे की तंगी और टूटती उम्मीदें
हाई स्कूल आते-आते खर्चा बढ़ने लगा। किताबें, गाइड, परीक्षा फीस—सब कुछ अब एक बोझ जैसा था। एक दिन पिता ने कहा,
“बेटा, खेत में मदद कर, फिर पढ़ाई करना।”
आरव खेत में दिनभर काम करता और रात में चिराग की रोशनी में पढ़ाई करता। कई बार भूखा भी सोना पड़ता, लेकिन हार नहीं मानी।
एक दिन स्कूल में टीचर ने कहा—
“अगर ऐसे ही मेहनत करता रहा, तो बहुत आगे जाएगा।”
उस तारीफ ने जैसे नई ऊर्जा भर दी।
5. पहली हार – इंटर का फेल होना
इंटरमीडिएट की परीक्षा में, उम्मीद से कम नंबर आए और वो फेल हो गया। गाँव में फिर से बातें शुरू हो गईं—
“अब तो सपना खत्म। अब खेत में ही रहो।”
आरव अंदर से टूट चुका था। कई रातें रोते हुए बीतीं। लेकिन माँ ने कहा—
“बेटा, हार वो नहीं जो नीचे गिरता है, हार तो वो है जो फिर उठ नहीं पाता।”
उसने फिर से पढ़ाई शुरू की। इस बार सुबह 4 बजे उठकर पढ़ता और दिनभर मेहनत करता। और अगली बार जब रिजल्ट आया—वो जिला टॉपर था।
6. शहर की तरफ पहला कदम
आरव ने अब तय किया कि उसे लखनऊ जाकर सिविल सेवा की तैयारी करनी है। लेकिन पैसों की भारी कमी थी। गाँव वालों ने फिर ताना मारा—
“शहर में क्या करेगा? ऐसे लाखों लड़के जाते हैं।“
पर पिता ने खेत गिरवी रखकर उसे शहर भेजा।
शहर की जिंदगी अलग थी—किराया, खाना, कोचिंग, और तन्हाई। लेकिन आरव ने खुद से कहा—
“यह सब सह लूंगा, बस एक दिन वो वर्दी पहननी है।”
7. असफलताओं का सिलसिला
पहली बार UPSC दिया—प्री में फेल।
दूसरी बार—मेन में फेल।
तीसरी बार—इंटरव्यू नहीं हुआ।
लोग कहने लगे—"अब वापस आ जाओ बेटा। वक्त बर्बाद मत करो।"
लेकिन हर बार फेल होने के बाद आरव खुद से एक बात कहता—
“सपना देखा है, तो उसे अधूरा नहीं छोड़ सकता।”
8. चौथी बार की जीत
चौथी बार उसने खुद को पूरी तरह बदल दिया। सोशल मीडिया छोड़ दिया, मोबाइल साइलेंट पर कर दिया, दिन में 10 घंटे पढ़ाई और बाकी समय मेडिटेशन।
जब रिजल्ट आया, तो स्क्रीन पर नाम चमक रहा था—
AIR – 56, UPSC CSE 2024
आरव अब IAS अफसर बन चुका था।
9. गाँव की वापसी
जब वो पहली बार वर्दी में गाँव लौटा, तो वही लोग जो ताना मारते थे, अब आरती उतार रहे थे। बच्चे उसे देखकर बोले—“मम्मी, हम भी IAS बनेंगे।”
उसने अपने गाँव में एक लाइब्रेरी बनवाई, और कहा—
“किसी और आरव को अब बिना किताब के ना रहना पड़े।”
10. सीख जो सबको मिले
आरव की कहानी हमें सिखाती है—
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सपना कितना भी बड़ा हो, उसे सच्चा बनाया जा सकता है।
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हालात कभी आपकी ताक़त से बड़े नहीं होते।
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असफलता आख़िरी नहीं होती, अगर हिम्मत बनी रहे।
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समाज की बातें आपको नहीं, आपकी सोच तय करती है।
निष्कर्ष:
अगर आप भी आरव जैसे हालात से गुज़र रहे हैं, तो याद रखिए—
"बिजली गिरती है ऊँचे पेड़ों पर, क्योंकि वो खड़े रहते हैं। आप भी खड़े रहिए—एक दिन चमकना तय है!"
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